आज पूरी दुनिया में गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस को “प्रकाश उत्सव” के रूप में मनाया जा रहा है । जिस दौर में गुरु नानक देव जी का आगमन हुआ वह सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक उथल-पुथल का दौर था । सामंती युग था । छोटी छोटी रियासतों व राजवाड़ों के मालिक ज़र, जोरू, गुलामों अर्थात ज़मीन, औरतों व गुलामों के लिए आपस में लड़ते रहते थे । जनमानस का बुरा हाल था । सामाजिक व राजनीतिक अराजकता का माहौल था । निजामों के साथ मिलकर काजी, मुल्ला, पंडित समाज में कर्मकांड, आडम्बर, वहम, भ्रम, जातपात, छूआछूत फैलाकर समाज को विभाजित करके अपना उल्लू सीधा कर रहे थे । शासन व न्याय व्यवस्था पूर्णता भ्रष्ट हो चुकी थी । महिलाओं की हालत तो और भी दयनीय थी । ऐसे माहौल में नानक का आध्यात्मिक, यथार्थ पर आधारित साहित्य व काव्य का दर्शन और मानवता के प्रति समर्पित उनके कार्य उन्हें युगपुरुष बना देते हैं । उनकी वाणी एक दार्शनिक महाकाव्य भी है । गुरु नानक का दौर भक्ति आंदोलन का दौर था । सभी सूफी संत व फकीर अपने अपने धर्मों से ऊपर उठकर नानक के कायल थे और व तर्कों के आधार पर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनता को जागरूक कर रहे थे । नानक हमेशा समाज के कमजोर – वंचितों के पक्ष में खड़े नजर आए । तभी तो वह कहते हैं ” नीचा अंदर नीच जाति नीची हूं अति नीच ।। नानक तिन के संगि साथी वडिया सो कया रीस “।।
इतिहास में वह पहले ऐसे क्रांतिकारी आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने समय के ताकतवर हमलावर बाबर को ललकारा तथा उनकी फौज को “पाप की जंज”अर्थात पाप की बारात कहा । वह कर्म योगी सच्चे फकीर थे । उन्होंने अज्ञानता रूपी अंधकार को मिटाने के लिए दुनिया की चारों दिशाओं में हजारों कोस यात्राएं की जिसे उदासियां भी कहा जाता है, इन उदासियों में बाला व मर्दाना उनके सहयोगी रहे । उन्होंने समाज से दूर पहाड़ों में, गुफाओं में रह रहे तपस्वियों, साधु-संतों को उनकी समाजिक जिम्मेवारी का एहसास करवाया तथा समाजिक बुराइयों व राजनीति व रजवाड़ों उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष में शामिल होने का आह्वान भी किया । उन्होंने जातिगत व धार्मिक भेदभाव को समाप्त कर लंगर व्यवस्था कायम की । एक नूर ते सब जग उपजा कौन भले कौन मंदे तथा ” मानस की एक जात” यह उनका मूल मंत्र था । “ना को हिंदू, ना को मुसलमान” । सभी में एक नूर है । नारी सम्मान सर्वोच्चता प्रदान करते हुए उन्होने कहा, “सो क्यों मंदा आखिए, जित जम्मे राजान” ।
उन्होंने परिश्रम से कमाया धन को पवित्र माना । तभी तो उन्होंने भाई लालो का आतिथ्य स्वीकार किया और मलिक भागों का मिथ्या अभिमान तोड़ा ।
नानक की विचारधारा को आगे चलकर 9 गुरुओं ने बाखूबी संभाला । मुगलों व स्थानीय शासकों द्वारा बेगुनाह आवाम पर जोर व जुल्मों का डटकर ना केवल विरोध किया, अपने छोटे छोटे बच्चे व समस्त परिवार तक मानवता के लिए न्योछावर कर दिए और आडंबरो के खिलाफ जद्दोजहद जारी रखी ।
इन 555 वर्षों के दौरान हमारे समाज में बहुत उथल-पुथल रही, राजनीतिक परिवर्तन भी हुए, राजे-राजवाड़ों, मुगल सल्तनत का अंत भी हुआ । अंग्रेजों ने भी हिंदुस्तान को लूटा व २५० वर्षों तक हम पर राज किया । लंबे संघर्षों व अनगिनत भारी कुर्बानियों के बाद हम आजाद हुए । अब हम आजाद मुल्क हैं। हमारी अपनी सरकार है । हमारा अपना एक लिखित संविधान है । संसद है, न्यायपालिका है, कार्यपालिका है । लोकतन्त्र क चोथा स्तंभ मीडिया भी है । 21वीं सदी में हम रह रहे हैं, विज्ञान भी तरक्की कर रहा है । लेकिन राजनीति, धर्म व इजारेदारी का आपस में घी शक्कर हो गए हैं । राजनीतिक में लोकतांत्रिक मूल्यों को तिलांजलि दे दी गई है । भारतीय समाज एक बार फिर चौराहे पर खड़ा है। “राजा सिंह व मुकदम कुत्ते वाली कहावत” चरितार्थ हो रही है। सरकारें दबंगों के साथ खड़ी हैं । अधिकतर धर्मगुरुओं, संतो, महंतो ने अपने अपने डेरे बना कर धर्म को कारोबारी व्यापारिक केंद्र बना लिए हैं । लोकतांत्रिक व्यवस्था में संवैधानिक मूल्यों की दरकिनार कर राजनीतिक नुमाइंदे इनका सहयोग कर रही हैं और धर्मांधता को बढ़ावा दे रहे हैं। लोगों को उनके असली मुद्दों से भटकाया जा रहा है । वैज्ञानिक संसाधनों टीवी व मीडिया का दुरुपयोग कर लोगों में कर्मकांड, पाखंड, आडंबरो के जाल में फंसाया जा रहा है । तर्कशील विचारों को कुंद किया जा रहा है । भ्रष्टाचार का बोलबाला है तथा न्याय लोगों से कोसों दूर है ।
ऐसे में आज नानक, बुल्ले शाह, कबीर, बाबा फरीद, गुरु गोविंद सिंह पेरियार, महात्मा बुध, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, महात्मा गांधी, भगत सिंह, डॉक्टर अम्बेडकर व अन्य समाज सुधारकों के दिखाए तर्कसंगत रास्ते आज भी उतने प्रासंगिक है, जितने पहले थे । गुरु ग्रंथ साहब में गुरु नानक देव जी रविदास, कबीर व अन्य गुरुओं के शब्द जीवन का यथार्थ है व प्रेरणा स्त्रोत हैं, हमारे समाज व पूरी मानवता के लिए एक आईना है । आज के विज्ञानिक युग में तो हमारे जीवन में पाखंडों, आडंबरो, समाज को विभाजित करने वाले विचारों को कोई स्थान नहीं होना चाहिए । लोगों में वैज्ञानिक सोच पैदा करना, अज्ञानता रूपी धुंध को समाप्त करना, समाजिक व राजनीतिक चेतना का विकास करना ही सच्चे अर्थों में “प्रकाश उत्सव” होगा ।
मोहन लाल नारंग पार्षद वार्ड 12,
5 नवंबर 2025