फतेहाबाद, 23 मई। सिरसा संसदीय क्षेत्र में पिछले करीब अढ़ाई माह से चल रहा प्रचार अभियान आज थम गया। चुनावी मैदान में 19 प्रत्याशी थे और 3 का नामांकन रद्द होने के बाद अब 16 उम्मीदवार बचे हैं। मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में नजर आ रहा है। करीब 19 लाख 24 हजार मतदाताओं वाले सिरसा संसदीय क्षेत्र में एक बार फिर से मोदी का मैजिक नजर आ रहा है। जरूरतमंद परिवारों को हर माह 2 लीटर सरसों का तेल, बाजरा, गेहूं दिया जाना एवं 3 हजार रुपए बुढ़ापा एवं विधवा पैंशन जैसे मुद्दे अहम बने हुए हैं। इसके अलावा श्रीराम मंदिर, धारा 370 जैसे मुद्दे भी भाजपा की ओर से जनता के बीच रखे जा रहे हैं। कांग्रेस नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने के मुद्दे को जनता के सामने रख रही है। सियासी पंडितों का मानना है कि सिरसा संसदीय क्षेत्र में पिछली बार करीब 70 फीसदी यानी 13 लाख 70 हजार वोट पोल हुए थे। इस बार भी आंकड़ा इतना रह सकता है। मतदान के दिन 49 डिग्री तापमान की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में मतदान में कमी आ सकती है। सियासी पंडितों का मानना है कि जैसी स्थिति 2014 से पहले 2005 और 2009 में कांग्रेस की थी, वैसी ही स्थिति में आज भाजपा है। भाजपा के पास अपना एक संगठन है। पन्ना प्रमुखों की टीम है तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसी टीमें हैं। कांग्रेस के पास अपना संगठन नहीं है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भाजपा ने मोदी मैजिक के दम पर प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में करीब 23 से 26 प्रतिशत वोट बंैक को अपने पाले में किए हैं। ऐसे में जीत के लिए भाजपा को जमीनी स्तर पर 16 से 18 फीसदी वोट हासिल करने हैं। कांग्रेस के पास संगठन नहीं है तो आज कांग्रेस का स्थायी वोट बैंक करीब 4 प्रतिशत है। कांग्रेस को जीत के लिए 40 फीसदी वोट अतिरिक्त प्राप्त करने हैं। सियासी विश्लेषकों का कहना है कि संसदीय चुनाव भौगोलिक नजरिए से एक व्यापक पैमाने का चुनाव होता है। 600 से अधिक गांव हैं। 1800 से अधिक बूथ हैं। ऐसे में इन चुनावों में वोट डलवाना भी महत्वपूर्ण होता है। इस नजरिए से संगठन और पन्ना प्रमुखों की टीम के साथ भाजपा मजबूत नजर आ रही है और जो 12 से 13 फीसदी ऐसा वोट होता है, जो रहता शहरों में है और वोट गांवों में है। ऐसे मतदाता गर्मी, समय के अभाव, कारोबार में व्यस्तता के चलते अपना वोट डालने से गुरेज करते हैं। ऐसे में जिस भी दल ने इस वोट और चुनावी प्रबंधन को अपने पाले में कर लिया तो उसकी जीत निश्चित हो जाएगी। इस दृष्टि में भाजपा का पलड़ा भारी नजर आता है। खैर अब 25 मई को सभी उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद हो जाएगी और 4 जून को नतीजे आने के बाद ही यह साफ हो जाएगा कि जीत का सेहरा किस के सिर बंधता है