फतेहाबाद। पर्यूषण महापर्व के उपलक्ष्य में श्यामनगर स्थित जैन सभा भवन में आयोजित सत्संग सभा में भक्तों को सम्बोधित करते हुए कथावाचक आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी महाराज ने आज सदाचार की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि आचार ही पहला धर्म है। किन्तु कौन सा आचार? वही आचार जिसका प्रादुर्भाव सम्यक ज्ञान से हुआ हो। सम्यक ज्ञान से प्रकट आचार ही सदाचार है।
आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी ने कहा कि आपका ज्ञान ही सदाचार का जन्मदाता है, इसलिए हमेशा सम्यक ज्ञान की आराधना करनी चाहिए। स्वामी जी ने अंतकृत भव्यात्माओं की कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि उन सबके जीवन में एक बात समान थी कि उन सबने तीर्थंकर प्रभु के वचन सुनकर ज्ञान की आराधना की और उस ज्ञान ने उनके भीतर वैराग्य अर्थात सदाचार को जन्म दिया। इसीलिए हमेशा याद रखें ‘पहले जानो उसके बाद करो’ क्योंकि बिना जाने करोगे तो हानि उठानी पड़ सकती है और जानने के बाद बिना करे रहोगे तो पश्चाताप करना पड़ सकता है। इसलिए अपने जीवन का उद्देश्य जानें और उसकी प्राप्ति में पूरी तरह से लग जाएं। स्वामी जी ने आगे कहा कि जीवन में सुख के साथ शान्ति भी आवश्यक है। हमें साधनों से सुख मिल सकता है किंतु शान्ति के लिए साधना की जरूरत होती है। राजा के पास साधन होते हैं किन्तु साधना नहीं होती और सन्यासी के पास साधना खूब होती है परन्तु साधन उतने नहीं होते। इसलिए साधन संपन्न होकर भी राजा को शान्ति पाने के लिए अक्सर सन्तों की शरण में जाना पड़ता रहा है, क्योंकि साधन कितने ही क्यों न हो जाएं वे आपको पूर्णतया तृप्त नहीं कर सकते। इसके विपरीत जिसके पास साधना है वह कम साधनों में भी खूब मस्ती के साथ जीवन जी लेता है, इसलिए जीवन में साधन की अपेक्षा साधना की बहुत बड़ी जरूरत रहती है। कार्यक्रम में आज पहुंचे सभी सभा द्वारा अतिथियों को सम्मानित किया गया। महापर्व के उपलक्ष्य में प्रात: 7 बजे से नवकार मन्त्र का अखण्डपाठ, शास्त्र वाचना, प्रतिक्रमण, प्रवचन आदि कार्य गतिमान हैं। इस अवसर पर प्रधान सुरेंद्र मित्तल, प्रवीण जैन, विनोद मित्तल, नवल जैन, कुलदीप जैन आदि उपस्थित रहे।
साधनों से सुख मिल सकता है किंतु शान्ति के लिए साधना की जरूरत : आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी
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